संज्ञानात्मक तंत्रिका विज्ञान केन्द्र

संज्ञानात्मक तंत्रिका विज्ञान केन्द्र की स्थापना मूल रूप से सन् 1948 में हुई थी, उस समय यह केन्द्र इलेक्ट्रोएनसेफ्लोग्राफी विभाग (ईईजी) के नाम से जाना जाता था। उस समय पूरे भारत वर्ष में यह ईईजी की पहली प्रयोगशाला थी। प्रारंभ में इस विभाग के पास छः चैनल एवं बाद में आठ चैनल वाले इलेक्ट्रोएनसेफ्लोग्राफ मशीन उपलब्ध थी। सन् 1995 में इस विभाग का नाम बदलकर साईकोफिजियोलॉजी एवं न्यूरोफिजियोलॉजी लैबोरेट्री रखा गया। 2004 में इसका नाम बदलकर संज्ञानात्मक तंत्रिका विभाग केन्द्र (सीसीएन) एवं सन् 2012 में पुनः इसका नाम बदलकर के.एस. मनी संज्ञानात्मक तंत्रिका विज्ञान केन्द्र रख दिया गया।

वर्तमान में इस केन्द्र के दो अनुभाग है- एक नैदानिक अनुभाग और एक शोध अनुभाग। नैदानिक अनुभाग में 21 चैनल पेपर ईईजी, 32 चैनल परिमाणात्मक ईईजी एवं 40 चैनल विडियो ईईजी उपलब्ध है। साथ ही इस अनुभाग में एक इल्क्ट्रोमाईयोग्राम (ईएमजी), नर्वकंडक्शन वेलोसिटि (एनसीवी), विजूअल इवोक्ड पोटेंशियल्स (वीईपी), सोमैटोसेंसरी इवोक्ड पोटेंशियल्स (एसएसईपी), ब्रेन स्टेम ऑडिटरी इवोक्ड रिस्पांस (बीएईआर) तथा गैल्वेनिक स्कीन रिस्पांस (जीएसआर) की सुविधा भी उपलब्ध है। शोध अनुभाग के पास 64, 128 एवं 192 चैनल का डेंस एैरे ईईजी एक्यूजिशन सिस्टम, 40 एवं 128 चैनल का इवोक्ड रिस्पांस पोटेंशियल (ईआरपी) एक्यूजिशन यूनिट, 40 चैनल का पौलिसोम्नोग्राफी (पीएसजी) यूनिट एवं रेपिटेटिव ट्रांसक्रेनियल मैग्नेटिक स्टीमूलेशन (आरटीएनएस) यूनिट भी उपलब्ध है। इस केन्द्र के पास अतिविकसित सिग्नल प्रोसेसिंग सॉफ्टवेयर जैसे कि एडवांस्ड सोर्स एनालिसिस (एएसए), ब्रेन इलेक्ट्रिकल सोर्स एनालिसिस (बीईएसए), न्यूरोस्कैन, करी, मैटलैब एवं मैथमैटिका उपलब्ध है। इस केन्द्र में ईईजी, इवोक्ड पोटेंशियल्स एवं आरटीएमएस से संबंधित विषयों पर प्रत्येक वर्ष अनेक प्रकार के शोध किये जाते हैं।

यह केन्द्र देश में तंत्रिका विज्ञान अनुसंधान के क्षेत्र में हमेशा अग्रणी रहा है। मानसिक विकारों में संज्ञानात्मक प्रक्रिया में क्षति होने की स्थिति में, विशेषकर सिजोफ्रेनिया, बाईपोलर डिस्आर्डर, आब्सेसिव कंपल्सिव डिस्ऑर्डर (ओसीडी) एवं मादक द्रव्यों की निर्भरता की स्थिति में डेंस एैरे ईईजी के पावर स्पेक्ट्रम एवं सामंजस्य विश्लेषण का अध्ययन किया जाता है। फॉरमैको ईईजी अध्ययन के अंतर्गत, उच्च घनत्व वाले ईईजी सिग्नल पर विभिन्न प्रकार की दवाईयों जैसेः एरिपिप्राजोल, क्लोजापिन एवं ओलांजापिन के प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। साथ ही लिथियम एवं क्लोजापिन के अध्ययन भी जारी हैं। इस केन्द्र में पोलिसोम्नोग्राफी यूनिट के शुरू हो जाने से मरीजों में मानसिक विकारों जैसेः सिजोफ्रेनिया, मूड विकार एवं मादक द्रव्य सेवन के कारण होने वाले अनिद्रा संबंधी विकारों के अध्ययन के क्षेत्र में एक नई संभावना का सूत्रपात हुआ है। जोल्पीडेम, मिलनेसिपरान एवं ओलेंजापिन जैसी दवाओं का निद्रा संरचना पर होने वाले दुष्प्रभावों का चिकित्सीय अध्ययन लगभग पूर्ण हो चुका है। संस्थान में आरटीएमएस के प्रभावों का अध्ययन विभिन्न बीमारियों जैसेः सिजोफ्रेनिया, ओसीडी, बाईपोलर डिस्ऑर्डर और विभिन्न मादक द्रव्यों का सेवन की लत एवं मिरगी पर किया जा रहा है। अभी हाल में ही संस्थान में एक नई टीएमएस मशीन जिसका की नाम मैग्स्टीम रैपिड-2 है, लगायी गई है जिसमें तंत्रिका विज्ञान सॉफ्टवेयर जैसेः बीईएसए, मैटलैब आदि उपलब्ध है। यह केन्द्र एफएमआरआई-ईईजी जी सुविधा उपलब्ध होते ही यह देश के अग्रणी केन्द्रों में से एक हो जाएगा।

इन सभी सुविधाओं के अलावा यह केन्द्र संस्थान के बाह्य विभाग में सप्ताह में एक दिन (गुरूवार) को मिरगी क्लीनिक का संचालन करता है और दीपशिखा, आईसीडी एवं एमएच, रांची में प्रत्येक बुधवार को यह केन्द्र अपनी सेवाएँ देता है। हमारे साप्ताहिक मिरगी क्लीनिक की शुरूआत समूह बैठक के साथ की जाती है जो मुख्यतः मरीजों और उनके देखभाल करने वालों द्वारा आयोजित किया जाता है, जिसमें वे अपने दृष्टिकोण साझा करने का अवसर पाते हैं। मिरगी से संबंधित विभिन्न जागरूकता संबंधी सामग्री और जानकारी पुस्तिका हिन्दी में भी उपलब्ध है, जिससे समाज के विभिन्न वर्गों को इसके उपचार की जानकारी प्राप्त हो सके। यह केन्द्र नियमित रूप से मिरगी की मरीजों की पहचान और उसके उपचार हेतु राम कृष्ण मिशन, बारीपदा तथा पाकुड़ (उड़ीसा) जैसे ग्रामीण इलाकों में शिविर चलाता है एवं समूह चिकित्सा एवं जन जागरूकता कार्यक्रम का संचालन करता है। एक दशक से अधिक समय से इस केन्द्र के मार्गदर्शन में मिरगी मरीजों के लिए एक स्वयं-सहायता समूह चल रहा है।

2020 में की गई कुल जाँचों की संख्या 4528 थी।

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