व्यावसायिक चिकित्सा विभाग

यह संस्थान देश में विभिन्न चिकित्सीय एवं पुनर्वास सेवाओं को शुरू करने में हमेशा से महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है। मनोचिकित्सीय पुनर्वास को मनोसामाजिक पुनर्वास के नाम से भी जाना जाता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत मानसिक रूप से असक्त व्यक्ति को समाज की मुख्य धारा में वापस लाने के लिए उन्हें विभिन्न प्रकार के सामुदायिक कार्यों में प्रशिक्षित करना एवं अच्छे रहन-सहन व विभिन्न गतिविधियों के तौर तरीके सीखाना है। मरीजों का पुनर्वास कार्य विभाग में कार्यरत, सामाजिक कार्यकर्ताओं, मनोविज्ञानियों एवं व्यवसायिक चिकित्सकों की देख-रेख में किया जाता है। पुनर्वास कार्यों के द्वारा मरीजों की मानसिक व शारीरिक क्षमता में परिवर्तन लाता है ताकि वे सामाजिक कठिनाईयों से निपटने हेतु अपने आप को समर्थ बना सके एवं व्यक्तिगत दुःखों व अवसादों से बाहर आ सके। इस विभाग द्वारा मानसिक मरीजों को प्रदान किए जाने वाले पुनर्वास कार्यों में औषधीय उपचार के साथ-साथ स्वतंत्र होकर जीवन-यापन करना, सामाजिक कौशल प्रशिक्षण, मरीज एवं उनके परिवारों को मनोवैज्ञानिक सहारा देना, व्यवसायिक पुनर्वास हेतु प्रशिक्षण देना, सामाजिक सहायता देना आदि शामिल है।

अक्सर मरीजों के सामाजिक समावेशन हेतु उन्हें सक्षम बनाने में, उन्हें मानसिक रूप से सबल बनाने में और कभी-कभी पूर्ण मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने हेतु चुनौतीपूर्ण कलंकों और पूर्वाग्रहों पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। इस संस्थान में सन् 1922 में प्रथम व्यावसायिक चिकित्सा विभाग (ओटीडी) की स्थापना की गई। भारत में पहली बार सीआईपी में सन् 1920 में ‘‘टोकन अर्थव्यवस्था’’ तकनीक की शुरूआत की गई जो आदत गठन चार्ट (एचएफसी) के नाम से जाना गया। इस व्यवस्था के तहत् मरीजों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से उन्हें कार्य करने के एवज में उपहार स्वरूप कुछ पारिश्रमिक देने का प्रावधान किया गया। महिला मरीजों के लिए अलग व्यवसायिक चिकित्सा विभाग बनने से पहले 1970 के दशक तक इसी विभाग द्वारा पुरूष एवं महिला मरीजों के पूणर्वास संबंधी आवश्यकताओं को पूरा किया गया। बाद में सन् 1967 में एक पूणर्वास केन्द्र और एक रक्षित कार्यशाला (प्रेस) की स्थापना की गई। संस्थान द्वारा सन् 1973 में भारी इंजीनियरिंग निगम (एचईसी) में एक औद्योगिक मनोचिकित्सा इकाई की शुरूआत की गई। वर्तमान में, केन्द्रीय मनश्चिकित्सा संस्थान में भर्ती मरीज विभिन्न प्रकार के मनोसामाजिक पुनर्वास गतिविधियों में शामिल किये जाते है जो निम्नानुसार हैः

लंबे समय से भर्ती लगभग 20 मरीज डी.एन. नन्दी रक्षित कार्यशाला में प्रतिदिन आते हैं। यहाँ पर मरीजों को पुस्तकों की जिल्दसाजी कार्य में, केस रिकॉर्ड फॉर्म और फाइलों को बनाने में, रिप्रोग्राफी में एवं संस्थान में उपयोग होने वाले विभिन्न प्रकार के फॉर्म बनाने में सक्रिय रूप से शामिल किया जाता है। संस्थान द्वारा पुस्तकालय को प्रदान किए गए विभिन्न प्रकार के जर्नल को जिल्दसाजी के लिए रक्षित कार्यशाला (प्रेस) में भेजा जाता है। यहाँ पर किये जाने वाले अनेक कार्य एक ही प्रकार के होने के कारण उबाउ व नीरस प्रकृति के होते हैं। इसी कारण यहाँ पर प्रशिक्षण में शामिल मरीजों को ‘‘टोकन अर्थव्यवस्था’’ सिद्धांत के आधार पर प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जाता है। कार्य में अच्छे

प्रदर्शन के लिए प्राप्त टोकन के बदले इन्हें बिस्कुट, चाय/काॅफी एवं अन्य उपयोग की वस्तुएँ उपहार स्वरूप प्रदान की जाती है। व्यावसायिक चिकित्सा विभाग में प्रतिदिन औसतन 40-50 मरीजों (अर्थात 1000-1250 मरीजों को प्रतिमाह) प्रशिक्षित किया जाता है। उनके कौशल विकास हेतु विभाग की विभिन्न गतिविधियों जैसेः बढ़ईगीरी, लोहे की कुर्सी और बेड की वेल्डिंग, कुर्सियों की बुनाई, पेंटिंग, लिफाफा बनाना, कार्ड बनाना, कर्मचारियों व मरीजों के वर्दी की सिलाई आदि में शामिल कर उन्हें उचित प्रशिक्षण दिया जाता है। इस प्रकार मरीजों के सहयोग से तैयार उत्पादों को बाजार में बेचा जाता है। वैसे मरीज जो पेशे से किसान है और बागवानी और सब्जी उगाने में दिलचस्पी रखते हैं, उन्हें सब्जी बागान एवं फूल बागान में उचित प्रशिक्षण दिया जाता है। यहाँ उपजने वाले फलों और सब्जियों को संस्थान के रसोईघर में भेजा जाता है। महिला व्यावसायिक चिकित्सा विभाग में प्रतिदिन औसतन 40-50 मरीजों (यानि प्रतिमाह 1000-1250 मरीजों) को सिलाई, कढ़ाई, बुनाई एवं जूट कार्य में शामिल कर प्रशिक्षित किया जाता है। इन महिला मरीजों के सहयोग से निर्मित उत्पादों को बाजार में बेचा जाता है। इसके अलावा मरीजों के द्वारा टाई, दुपट्टा, कार्ड एवं पेन स्टैंड आदि का भी निर्माण किया जाता है।

बाल एवं किशोर मनोचिकित्सा केन्द्र के बच्चे और किशोर मरीज भी इस विभाग में व्यावसायिक एवं उम्र आधारित विशिष्ट शैक्षिक पुनर्वास गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल होते हैं। प्रतिदिन औसतन लगभग 15 भर्ती मरीज बच्चे (अर्थात 75 मरीज प्रति माह) ‘‘पहल क्लब” की गतिविधियों में सम्मिलित होते है। इस क्लब की गतिविधियाँ एक प्रकार का पुनर्वास कार्यक्रम है, जिसमें मनोरंजन के विभिन्न कार्यक्रमों के अलावा कार्ड बनाना, हैण्ड बैग बनाना आदि सिखाया जाता है। इन सामानों को बाजार में बेचा जाता है तथा इससे प्राप्त आय को मरीज कल्याण हेतु उपयोग किया जाता है। ‘‘पहल क्लब” की गतिविधियों में ‘‘कहानी वाचन” का सत्र शामिल किया जाता है। इससे सामाजिक कौशल के विकास और सुधार में मदद मिलती है। कई बार कहानी-सत्र के संचालन की जिम्मेवारी किशोर बच्चों को सौंपी जाती है। इससे हमें अन्य बच्चों की देखभाल करने की उनकी क्षमता और विश्वसनीयता का आकलन करने में मदद मिलती है। इस प्रकार की गतिविधियाँ उनके नेतृत्व कौशल में विकसित करने में मदद करती है। ‘‘पहल क्लब” के द्वारा समय-समय पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, जिसके तहत् बच्चों को विभिन्न प्रकार के हस्तशिल्प, ग्रीटिंग कार्ड व लिफाफे बनाना तथा विभिन्न आकारों में कागजों को काटना और उसे कार्डों पर सही तरीकें से चिपकाना सीखाया जाता है।

इस प्रकार की गतिविधियाँ बच्चों को शारीरिक गतिशीलता में समन्वय स्थापित करने एवं ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता विकसित करने में मदद करती है। प्रत्येक गतिविधि के बाद अतिसक्रिय (हाइपर एक्टिव) बच्चों को 10 मिनट का विश्राम दिया जाता है। इस क्रियाकलापों को पूरा करने के बाद, बच्चों को कैरम, बैडमिंटन आदि जैसे कई इनडोर खेल खेलने दिए जाते हैं।‘‘पहल क्लब” इन बच्चों के लिए एक खेल के मैदान की तरह है। साथ ही यह एक ऐसा मंच है, जहाँ मरीज बच्चे अपने सामाजिक लांछनों एवं दुःखों से मुक्त होने में स्वयं को समर्थ बना पाते है।
 

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